ताइवान पर लगातार सैन्य दबाव बना रहे चीन को अमेरिका ने बहुत सख्त जवाब दिया है। रविवार को अमेरिकी नेवी ने अपने दो बेहद खतरनाक और हाईली एडवांस्ड न्यूक्लियर वॉरशिप ताइवान की खाड़ी में तैनात कर दिए। अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी की विजिट के बाद से ही चीनी सेना ताइवान के बिल्कुल नजदीक मिलिट्री एक्सरसाइज कर रही है। अब पहली बार अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई की है।
खास बात यह है कि अमेरिका के इस एक्शन के फौरन बाद चीन के तेवर ठंडे पड़ते दिख रहे हैं। रविवार को जब अमेरिकी वॉरशिप ताइवान स्ट्रैट पहुंचे तो चीन ने कहा- हम हालात पर नजर रख रहे हैं। तनाव बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है।
क्या कर रहा है चीन?
PLA (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी या चीन की सेना) ने ताइवान के चारों तरफ 6 ‘नो एंट्री जोन’ घोषित किए हैं। यानी अब इन 6 रास्तों से कोई पैसेंजर प्लेन या शिप ताइवान नहीं पहुंच सकते हैं। चीन ने ताइवान के चारों ओर अपने J-20 फाइटर जेट और युद्धपोतों की तैनाती कर दी है। चीन की सेना नॉर्थ, साउथ-वेस्ट और साउथ-ईस्ट में ताइवान के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल कर रही है।
चीन पर दबाव का असर
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रविवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक कई साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब अमेरिका ने चीन की सैन्य ताकत को सीधे तौर पर चैलेंज किया है। इससे भी बड़ी बात यह है कि अमेरिका ने एक नहीं बल्कि दो वॉरशिप इस इलाके में तैनात किए हैं। चीन को पहली बार अहसास हो रहा है कि अब अमेरिकी नेवी ताइवान की मदद के लिए मोर्चा संभालने को तैयार है।
इसका असर चीन की डिफेंस और फॉरेन मिनिस्ट्री के बयानों में भी देखा गया। दोनों ही मंत्रालयों ने एक ही बात कही। बयान में कहा गया- हम ताइवान स्ट्रैट में तनाव नहीं बढ़ाना चाहते। हम सिर्फ मिलिट्री एक्सरसाइज कर रहे हैं। अमेरिका को भी टेंशन बढ़ाने से बाज आना चाहिए। ताइवान हमारा हिस्सा है।
चीन के बयान के बाद अमेरिकी नेवी ने भी जवाब दिया। उसने कहा- हिंद महासागर और इसके रास्तों पर कब्जा नहीं करने दिया जाएगा। ये सबके लिए है और इसे फ्री ही रखा जाएगा। हम किसी भी एक्शन के लिए तैयार हैं।
अमेरिका-चीन के बीच टकराव
- अमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए। ताइवान से डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिए। हालांकि चीन के ऐतराज के बावजूद अमेरिका फिर भी ताइवान को हथियार सप्लाई करता रहा। अमेरिका भी वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर उसकी पॉलिसी साफ नहीं है।
- राष्ट्रपति जो बाइडेन फिलहाल, इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया।
- इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ तेज कर दी। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।
- अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।
चीन और ताइवान का विवाद क्या है
- चीन मानता है कि ताइवान उसका एक राज्य है, जबकि ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है। इस झगड़े को समझने के लिए दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के वक्त में जाना होगा। उस समय चीन के मेनलैंड में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कुओमितांग के बीच जंग चल रही थी।
- 1949 में माओत्से तुंग की लीडरशिप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और कुओमितांग के लोग मेनलैंड छोड़कर ताइवान चले गए। कम्युनिस्टों की नौसेना की ताकत न के बराबर थी। इसलिए माओ की सेना समंदर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी।
- चीन का दावा है कि 1992 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और ताइवान की कुओमितांग पार्टी के बीच एक समझौता हुआ। इसके मुताबिक दोनों पक्ष एक चीन का हिस्सा हैं और राष्ट्रीय एकीकरण के लिए मिलकर काम करेंगे। हालांकि कुओमितांग की मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी 1992 के इस समझौते से कभी सहमत नहीं रही।
- शी जिनपिंग ने 2019 में साफ कर दिया कि वो ताइवान को चीन में मिलाकर रहेंगे। उन्होंने इसके लिए ‘एक देश दो सिस्टम’ का फॉर्मूला दिया। ये ताइवान को स्वीकार नहीं है और वो पूरी आजादी और संप्रभुता चाहता है।